Friday, October 10, 2008

भटकंती

क्यु हर राह छुटती चली गयी,
जो तेरी ओर जाती ही नही .
क्यु हर निगाह चुभती है,
जॊ तेरी होती ही नही.
संभाला तो ले ही लिया साजन,
तेरे गम के हौसले से,
क्यु हर नफ़्ज सुलगती है,
जो तेरे नाम नही होती.

नगमे तो बहोत जीये,
कुछ तुझे भुलाने मे,
कुच्छ तुझे भुलकर बरबाद कीये,
जींदगी हर मोड ,एक नया इम्तीहा
लेती है.
कुछ पल तेरी याद मे खोकर,
कुछ तेरे तरानो से आबाद कीये.

अजीबसे मतलब निकलते है,
रिश्तो से यहा,
तेरे इन्कार से भी रिश्ते की एक
डोर बांधली.
कभी तेरे गम के शुहाओ मे
इस कदर खो जाती हू,
बस उन्ही चार पलो मे मैने
अपनी जिंदगी समेट ली.

नही जीना अब तेरी राह तकते मुझकॊ साजन,
खुदको कबसे तुझमे मिटा चुकी हु.
फ़ना किया है अरमानो को तेरी मोहब्बत मे,
खुदको तुझ्पे कबसे लुटा चुकी हु.

अपनो ने ही जखम कुछ इस कदर दिये,
हम अप्अने आप से बेगाने हुए.
इसीलीये गैर बन गये खुद उनके लिये,
अश्कोंको हसी मी दफ़नाये,हम सौ मौत जिये.

उसको भी खुश्स्नसीबी समझेंगे हम अपनी,
आखीर मे क्यो ना हो,पूछा तो सही.
हमसे कुछ इस कदर जुदा हुए है,
के उन्हे हमारे जीने की भी कोइ जुस्तजु नही.

D shivaनी
nagpoor

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