पर नामुमकीन ना मानु कभी,
हर पथ पर है कठीनाइ झगमग,
पर हार ना लेकीन मानु कभी.
पथिक बनी मै धुंड रही हू,
नेक मन्झिल के राह अनेक;
हर राह बनाए साकी मुझको,
चुन ना पाउ उनमे एक.
ठुकराउ यदी कींतु राह,
मेरे लीये क्या बच पाएगा शेष कभी?
यदी पग ना ऊठाउ सही राह,
तो मै क्या,होन्गे फ़ीर वीशेष सभी.
D shivaनी
Nagpoor
No comments:
Post a Comment