आज फिर उसके दर पे जाने को जी करता है.
रोज कि हवा ओ ने रुख मोड लिया हो,
वो फासला आज मिटाने को जी करता है.
वही सब मुकाम दस्तक दे राहे है,
उनसे हाथ मिलाने को जी करता है.
जीन हाथो को किसी और के लिये पीछे छोड आई थी
उसे फिर गले लगने को जी करता है.
वो चौकठ सुनी है मेरे बगैर,
फिर उसे मस्ती के रंग मे रंगाने को जी करता है.
Dshivaनी
Nagpoor-USA
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