Friday, August 1, 2008

हमारे आलम को तो बस
एक बहाना चहीये नशा करनेका.
तेरे नजर के शुआओ
से एक पैमाना पीने का.

तेरी हर आहट एहसास ये दिलाती है,
तुही है मक्सद अब हम्मरे जीने का.

कौनसी आरजु तुझे तौफ़े मे देगी मुझको?
अब तो बस इंतजार है तुझमे खुदको खोने का.

क्या नशा करु तेरी याद मै साजन,
तुने ही पिलाया जाम मोहब्बत का.

साकी ने बतलाया मुझको,नशा बरबादी दिलाएगा,
जबकी शिवानी नाम है,मोहब्बत मे फ़ना होने का.


D shivaनी
nagpoor

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