Tuesday, November 27, 2007

आज फ़िर.......................

आज फ़िर गझल सुनने को दील करता है.
उसकी हर बात दोहराने को दील करता है.
कुछ इस तरह जुडे ये कच्चे धागे,आज
फ़िर नया सपना बुनने को दील करता है.
आज फ़िर गझल सुनने को दील करता है.


D shivaनी
nagpoor

1 comment:

HAREKRISHNAJI said...

कुछ तो पढीये के लोग कहते है
आज गालीब गजलसरा न हुवा ।